जबसे मुस्कुराना

शिकायतें सारी हो गईं हैं अब पानी

हुनर सीखा है जबसे होठो ने धानी

दूूर हो जाती है इससे कई परेशानी

बिना बोल, बोलती यह ऐसी वाणी !

पास रहता सबके,यह धन होता ऐसा !

फर्क इतना, हम रखते नही अपने जैसा

तोलते सुकून से नही, बना बाट पैसा!

फिर सख्त होठ दे ना सकेंगे बैन वैसा!

आंख देखेंगी,दिमाग पहनेगा नया चोंगा

सबसे मिल कर भी गैरियत ही पलेगा

पैसे की हवस ने बदला है वह प्यारा जमाना

अपनापन बिसराया,हम भूले जबसे मुस्कुराना!

6-2-24

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