निर्विकार चिरंतन सत्य हो तुम ही!
निराकार रुप का आकार तुम ही!
जन्म मृत्यु परे शक्ति पुंज विराम हो!
तुम्ही चेतना,अवकाश तुम ही हो!
आरम्भ विहीन तुम अनन्त धाम हो!
सती कैलाश रमें, कैसे सम्बन्ध विहीन हो?
ओंकार स्वरूप, हो आधार सनातन !
सृष्टिकाल से भी तुम हो पुरातन !
दयावान तुम बने, जीव हृदय विराजते
अनुभूत जगत तुम क्यों नही सवांंरते?
ना सुख दुख,ना पंचभूत ही व्याप्ते!
ओंकार बन नेपथ्य में हो सदा गूंजते!
तुम ही सिद्ध चेतना की हो पुकार!
ऋषी मुनिगण के बने वैराग्य साकार!
ना तुम जड़ हो ना तुम हो चेतन!
अनन्त सनातन तुम!हो विचार मंथन !
ब्रम्हांड रचयिता !कारणों के कारण हो
तुमसे है शिव ,तुममें है शिव, तुम ही शिव हो!
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
शमा सिन्हा
12-2,24