हो रहा था बसन्तआगमन शुुक सवार कामदेव का!
खिले अनेक थे फूूल,चख रहा था रस मधुकर मधु का!
गुजरा तभीआकाश से,पुुष्पाच्छादित कामदेव रथ था।
कलकत्ता गलियों में छन रहा था गर्मा गर्म समोसा!
हवा ने की ठिठोली, लेकर खुशबू ढेरआचल में समेट,
ठुुमकती लहराती वह पहुंची, कामदेव को करने भेंट!
“वह क्या बन रहा है,रथी?”पूछा कामदेव ने बेचैनी से।
“वहीं से तो मैं आ रही!”धीरे से कहा चंचला हवा ने।
” लीजिए, आपके लिए मैं लेआई बांध इसे आचल में,
बहुत नायाब है यह पकवान! स्वाद अनोखा साथ में!”
मशहूर” दुकानों के सिंघाड़ों ने एकसाथ जोर से पुकारा,
“वैलेंटाइन डे है आज!स्वीकार कीजिए निमंत्रण हमारा!
निकट ही जयमाल सी सजीली, मुस्काती दिखी चमकती नवेली!
गले गलबईया डाले,रिझा रही थी जलेबी अनेक रसीली!
“हां !हां ! वहीं चलिए”कहकर शुक ने उड़ने को पंख पसारा,
रुक न सके देव,पिघल गये देख कढ़ाई का सिंघाड़ा!
उठा लिया लपक कर, बढ़ा हाथों से दोंनों को देव ने एक ही बार में!
बस फिर क्या था,देख दूूर से, लार लगी उनके होंठों से रिसने।
अचानक तभी महीन सुरीली आवाज एक दी सुनाई।,
“मेरा है यह पिया दुलारा,बना दो हे देव! मुझे इसकी लुगाई!”
हम दोनों एक दूजे से,जाने कितने जन्मों का सह रहे हैं जुदाई !
दया करो हे देव!हम पर,तुम्हारे स्वागत में हमने है जान बिछाई!
आते हैं बड़े चाव से सब, देखते हमें सब हैं सर झुकाकर!
कोई है उसे अकेले लेजाता,कोई लपकता है मेरे रस पर !”
पकड़ जलेबी का हाथ, हुआ उदास नमकीन सिंघाड़ा!
“वर देकर जाओ देव,निवारण करो यह संकट हमारा!
“जलेबी तरसती मेरे लिए!मै मरताअपनी वैलेंटाइन पर !”
प्रसन्न हुए कामदेव बहुत, सेवा-स्वाद-खुशबू तुष्टी पाए।
पांंचो बाणों से जिव्हा पर रख,सगाई-लग्न एक साथ
निभाए !
अनगिनत झापियां बंंधवाया साथ,देवों मेंबांंटने को बांयना!
समोसा जलेबी के लगाव ने बना दिया कामदेव को दिवाना!
दिया उन्हें असीम आशीष,”सदा सिंघाड़ा जलेबी जो नित खाये,
प्रिया-प्रिय कभी ना बिछड़े,दिनों दिन प्रेेम सौभाग्यअखंंड उजिआये,!”
शमा सिन्हा
तारीख 10-3-24
रांची