भगवान  विष्णू

दिया यह अस्तित्व मुझे तुमने

स्वीकारा तुम्हे पिता है हमने!

दौड़ रहा जो लहू है जग में,

कण कण है अनुग्रहीत तुमसे!

चकित हूं देख तुम्हारी महारथी!

स्वतः कैसे सारी क्रियायें हैं होतीं!

आंख चहूं ओर सहज है देखतीं

पलक झपकते तंत्र सूचना देती!

पानी पीना है या भूख है लगी!

अंग करते पूर्ण  इच्छायें सारी

नियंत्रण करती शक्ति तुम्हारी!

कैसे मन, विचार-विमर्श है करता?

किस यंत्र के सहारे कार्य होता?

इस यंत्र को कौन बैट्री है चलाती?

उसकी उर्जा किस स्त्रोत से हैआती?

किनअवयवों से विद्युत उत्पत्ति  होती!

अन्न और जल कैसे सबकी पूर्ती हैं करती?

नलियां कैसे भोजन रस हैं निकालती?

किस विधी यंत्र सबको है पीसती?

कौन से कटर का उपयोग  हैं करती?

फिर  किस छन्ने से इस मिश्रण को छानती

छान कर  किसे हैं वितरण करने को देतीं?

बंटवारा इतना नन्यायिक कैसे हैं बनता?

अंंग हमारा स्वतः कैसे स्वचालित है रहता?

शैशव बालपन जवानी बुढ़ापा कैसे आता?

यह जीव कैसे  इतना बड़ा हो जाता?

जीव से उसकी प्रतिछाया कैसे उत्पन्न होती?

उनकी प्रतिकिया क्यो,नियंत्रित नही रह पाती?

शरीर के अंदर शरीर का उत्पत्ति कैसे है होती?

  समय के साथ पदार्पण बाहर वह कैसे करती?

किस तत्व के खत्म होने से मृत्यु है आती?

प्रत्येक क्रिया मुझे एक अबूझ पहेली है लगती!

अटकलें लगाती किंंतु विचााशक्ती असफल होती!

हे पिता, तुम्हारी कलाकारी मैं नही समझ पाती!

15-2-24

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