बसंत

शीथिल हो रही प्रकृति को किसने है जगाया?

गम्भीर मन उसका किसने चंचलता से नहलाया?

धरा सुप्त पड़ी थीं अभी , किसने उसको बहकाया?

चुनरीओढ़ा झीनी-पीली, पायल किसने है पहनाया!

वह कौन शुक-सवार है जो पांच बाण लेेकर आया?

बना कर हर कोना रंगीन,खेतों में भी फूल  सजाया?

समीर ने पी लिया मधुरस कोई,इत-उत है फिरता बौराया!

तीसी रंग गई नीली,बसंत रंग गेंदा ने है बिखराया,

फैला कर बांहें डालिया ने,टिथोनिया को गले लगाया!

सोया मोगरा जाग उठा,उड़ा गुलाल,होश में रजनीगंधा आया!

गाने लगे गीत भौरे,तितलियों ने  वेणु पर राग मल्हार  बजाया!

ब्रजवासी हुये यूं मस्त जैसे अबीर संग मदन ने भंग तीर हो मारा !

मटमैले जमुना जल में, गोप गोपियों संग खेेल रहे हैं लल्ला !

पिचकारी लेकर आये मोहन, मचा फूलों के कानन में हल्ला,

गिरी गोवर्धन के आनंदकोष ने बरसाया घेनुओं पर प्रेम अपार !

बहने लगी दूध की नदियां,कण कण में छाया सरस व्यवहार !

राधा-रमण हुल्लड़ देेखने, गोपी बन शिवलोक धरती पर आया।

देखो बसंत लेेकर नौरस , सबके चित में है मदहोशी समाया !

लगा झूमने  नंद यशोदा का ब्रज,केेशव ने सबका मन भरमाया!

शमा सिन्हा

14-3-24

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