हे कृष्ण, तुम लेकर रंग ना आना इस होली पर,
कुंज गलिन ने बिछा दिया, चम्पा गुलाब राहों पर !
गिनती करते मैं थक गई,बीते कितने सूने पहर,
करना ना तुम बहाना अब देखो टूटे ना मेरा सब्र!
“लौटूंगा शीघ्र!” कह कर,छोड़ गये हमें गोकुल में,
सखा ढ़ूढ थके तुम्हे,गलियां मथुरा-वृंदावन राहों के!
खेलेंगे हम इस बार होली, मधुबन की मिट्टी संग
हम ग्वालिने लायेंगी, जमुना-जल में मिलाकर भंग!
ऐसी चढ़गी मदहोशी तुम पर,भूल जाओगे मथुरा,
नंद-यशोदाके संग, सारा बृदावन का बैठायेंगीं पहरा!
जैसे बांधा था मैया ने उस दिन तुमको,ओखल संग
चतुराई जो दिखाई तुमने तो भर लेंगे तुमको अंक!
नंंद यशोदा खिलायेगे पकवान रसीला,हम डालेंगी रंग
आना लल्ला हमारे अंगना,करना ना तुम उम्मीद भंग!