“देखो मचा धमाल, हुआ ये कैसा हाल!”

मनभावन यह मौसम,बसंत  लेकर  है आया

देखो गूंंजा बुलावा कृष्ण की मधुुर  बांसुरी का!

“ना आउंगी खेलने होली,तुझसे ओ चितचोर,

तूने किया विह्वल ऐसा,पिहू! पिहू बोले मोर!

वृंदावन के छोरों में  ऐसी लगी  आज है होड़,

किसने कितनी मटकी फोड़ी, कन्हाई रहे जोड़!

मैनें भी कसम है खाई,रंग तब ही उनसे लगवाउंगी ,

आज माधव देंंगे बेणु अपनी,मैं ही सबको सुनाउंगी!”

कह रही थी राधा,मन की बात सखी ललिता से,

मुस्काते नंदलाल समझा रहे सखाओं को इशारों से!

“माफी मांगने गिरना तुम सब किशोरी के चरणों में,

सराबोर कर दूंगा झट,श्यामा प्यारी को मैं पीछे से!”

फिर  क्या था,ग्वाल बाल्को ने ऐसा नाटक रचाया,

चौंक गई रमण राधिका,जब मोहन ने रंग से भिगोया!

मुस्कान भरी डांट ,सुनकर गोकुल के छोरे हुए  मस्त,

देेख रहे देेवता ,होली का यह रास, श्वास रख टठस्त!

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