आज जब सूरज आया, जगाने लेकर नया सवेरा,
मुुग्ध देख ,उसकी छटा निराली देने लगी मैं पहरा!
स्नेेह अंजलि मध्य समेट चाहा उसे घर लाना!
वह नटखट छोड़ मुझे चाहा आकाश चढ़ना!
होकर मैं लाचार, लगी देख ने उस की द्रुत चाल,
सरसराता निकल गया वह,भिंगोकर मेरी भाल!
“तुुमही जीत गये मुझसे!” कहा उससे मैनें पुकार ।
“अभ्यास कर्म है नित का!”बताया सूूर्य ने सार
” कर्त्तव्य करो!तुलना करने से ही सब जाते हैं हार!
चरैवेती!चरैवेती!कर्म-चेतना करेगी हर कठिनाई पार!”