पुत्र कामना पूर्ण कर ने को हुये उद्धत राजा दशरथ,
ऋशष्यश्रृंंग की अगुआई में किया दो यज्ञ आयोजित!
प्रथमअश्वमेध पूर्णाहुति पश्चात पुत्रेष्टी यज्ञ हुआ सम्पन्न,
प्रगट हुआ शुुभलक्षण युक्त अग्नि पुरुष एक असाधारण !
“मैं भगवान विष्णु-दूत,लेकर आया दोंनों यज्ञ का फल,
चिरस्थाई रखेंंगें प्रसिद्धी आपकी,आपके होंगें चार पुत्र सफल!”
प्रसाद का आधा हिस्सा दिया राजा ने पटरानी कौशल्या को
सुमित्रा को मिला अंंश चौथाई, आठवां हिस्सा केकैई को!
क्षीर का शेेष पुनः दिया,दशरथ ने सस्नेह मंझली रानी को!
उचित समय पर जन्मे चार पुत्र, दशरथ तीनों रानीयों को!
चैत्र मास,शुक्ल पक्ष की मंंलमयी नौमी तिथी जब आई,
पाकर पुत्र रुप में श्रृष्टा को,धन्य हुई “श्रीराम कौशल्या माई!”
केकैई पुत्र भरत आये बनकर,राम-प्रिय, मान्डवी- पति श्यामल।
हृदय जिनके हृदय सीता-राम अमृृत बहता,धारा सतत अविरल!
सुमित्रा स्नेेह-अंक सौभाग्य बने राम-भक्त,उर्मिला के लक्षमन ,
साथ में जन्में कनिष्क सहोदर, शस्त्रधारी,श्रुतकीर्ती- स्वामी शत्रुघ्न !
ये सब विष्णु अंश बने सहयोगी ,रावण-वध को हुई सनातन लीला न्यारी,
बालमीकी कीभविष्य वाणी , बन गई तुलसीदास की “मानस” प्यारी!
दशरथ को देकर”क्षीर पात्र”दिव्य पुरुष हुआ अदृश्य