खाक मजा है जीने में

जीवन  की शर्तें हैं अनगिनत

कठिन मानना जिन्हे शत प्रतिशत !

श्वासों की गिनती होती है यहां,

और मालूम नही मंजिल है कहां!

उसे ही पता हम जन्मे क्यों,

पर दिशा खोज में हम खोये यूं

मृग बौराए अपने इर्द-गिर्द ज्यों

सदा खुशामद में दौड़  लगाते

शैशवकाल पार हम वृद्ध  हो जाते!

मील का पत्थर  ढूढ़ने रह जाते।

निश्चिन्त कभी ना हम हंस पाते

चिंता से घिरे हम रोते रह जाते

छोड़ दे जैसे तृष्णा तड़पने को!

जन्म लेते ही सब लगते नाचने,

खाना-कपड़ा-मकान खोजते!

एक बार पाकर खत्म ना होता

चक्रधर चक्र मे चक्कर लगाता!

खाक मजा मानव जीने का लेता!

क्या खाक मजा जीने में आता!!

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