दिल चाहता है —
जो भी चाहे मन,सब हो पूरा
सपना कोई भी ना रहे अधूरा
क्या कहूं,किसे ना गिनूं
ख्वाहिशों में किसे मैं तजूं?
दुनियां इतनी सुन्दर है कैसे!
नभ में तारे चमकते हैं जैसे!
चुनरी में जड़ कर श्रृंगार करूं ?
या गूंथ कर अपनी पायल बनाऊं?
ये सूरज जो मेरी बिन्दि बन जाता,
रुप मेरा तब कितना चमकता!
चन्दा की नाव अगर मुझे जो मिलती
सारे गगन की मैं खूब सैर करती!
पहाड़ों से फल,मीढा झरना नहाती,
सांझ ढले बादलों के घर मैं जाती!
ना पढ़ाई की चिन्ता ना दौड़ नौकरी की
ज़िन्दगी सारी अपनी मैं मस्ती में काटती
दिल की मुराद वो सारी,भूली बिसरी,
गिन गिन कर हर एक को पूरा मैं करती!
स्वरचित एवं मौलिक रचना।
शमा सिन्हा
रांची।