“ज्ञान का हूं मैं ऐसाभंडार,
देने को आई ज्ञान अपार!
पास हमारे है ऐसा भंडार ,
पाता नहीं कोई मेरा सार!
चार वेद औरअठारह पुराण ,
अठारह स्मृतियां और रामायण !
आरण्यक और उपनिषद ब्राह्मण,
अनंत है इनके सूत्र परिमाण !
रूची जग गई मुझमें जिनकी,
मिल गईं अक्षय उसको निधी!
नाप सकता ना कोई मेरी परिधि,
बन जाता है वह रचयिता विधि!”