धरा

यह धरा नहीं ब्रम्ह तेजस्विता है

अलौकिक इस की सहनशीलता है

उपजती इसमें  बस एक ममता है

धर्म इसका बस देते जाना है !

आकाश इसका है एक प्रिय  सखा

सागर से लेकर है नीर-श्रृंगार आता

तन मन पर इसके है बिखराता

रंग बिरंगी चुनरी है पहनाता !

कली फूल और फल जब आते,

खुशी से धरती का मन भर जाते,

हर मौसम का नया उपहार बनाते

अर्पण कर अपने को,कृतार्थ समझते

स्वरचित एवं मौलिक रचना!

शमा सिन्हा

रांची।

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