"वर्षा "
ऐ वर्षा रानी,हम सब हैं रसिक तुम्हारे
ढंडक तेरी ऐसा लुभाती,सब होते दिवाने!
बादल संग उतरती तुम जब सबको नहलाने ,
बीच बीच में परिंदे भी लगते हैं चहचहाने!
चोंच मार कर तोता आता,पके आम को खाने,
देख मेंढक को कूद लगाते, झिंगुर लगते गाने!
बड़े बेबाकी से पानी के गड्ढोंपर युवक गाड़ी चलाते,
किनारे के पथिक दौड़ते अपने कपड़े बचाने!
रही कसर पूरा करने को आते बोलेरो वाले,
सादे स्वच्छ लिबास पर बनतीं,ब्लाक प्रिंट डिजाइने!
शरारतें परेशान करती फिर भी बादल बहुत अच्छे हैं लगते!
स्वरचित एवं मौलिक रचना।
शमा सिन्हा
रांची।