“अटूट सम्बन्ध “
जाने कैसे जुड़ जाते हैं दो मीत।
बनते सहगामी,लेकरअक्षय रीत।।
इस जीवन के भी वो पार निभाते।
रंजिशों को अपनी छोड़ हंसते गाते।।
कसमों के बंधन में दोनो बंध कर।
लोकलाज में रहते साथी बन कर।।
गृहस्थी की गाड़ी चलाते मिल कर।
रक्षित होता धर्म मर्यादा में रहकर।।
कई बार ऐसा भी वक्त आ जाता।
नींव का कोई पत्थर हिल जाता।।
फिर चिंता की अग्नि जलाने लगती।
भावि कीस्मत की दिशा सताने लगती।।
जब सूझता ना आंखों को रास्ता कोई ।
अदृश्य होती नियति, विश्वास लेकर कोई।।
धैर्य थाम, दोनों खुशी का किनारा तब ढूंढते।
कुछ देर की दूरी में प्रीत के धागे को समेटते।।
पुनः एक बार साथ चलने की कसमें खाते।
विश्वास का आधार लेकर ताउम्र समर्पित रहते।।
अकेला जो उनमें कोई एक छूट जाता।
दर्द को अपने कभी वह भुला ना पाता।।