” करवाचौथ “

स्नेह रंजित अनुपम है यह सुहाग त्योहार ।

भरा जिस में त्याग- समर्पण-निर्मल प्यार ।।

दीर्घ काल का साथ, दो आत्मा होतीं समर्पित।

जैसे यह धरती और चंद्रमा इकदूजे को हैं अर्पित।।

कार्तिक माह के चौथे दिवस को चांदनी जब आती।

पैरों में बांध पैंजनी,तारो जड़ी चुनरी चमकाती ।।

भर कर अंंजली पुष्प-पत्र-जल करती अर्पण।

हो जाता तृप्त नारी-मन,पाकर प्रेम सजन!

सफल होता पूर्ण दिवसीय निराजल व्रत त्योहार ।

बांधता दोनों को करवाचौथ,अखंड संबंध अपार ।।

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