“जाड़े की रात “

घर मे त्योहार सा उमंग भरा माहौल था छाया

मुन्नी माई के पास बेटे का टेलीग्राम था आया!

दो रात की रेल सवारी करके,बेटा पहुंचा मुम्बई

खुश देख छोटी बहन को, नांचने लगा नन्हा भाई!

” मिल गई है मुझे नौकरी!”खबर जब चिट्ठी लाई,

“जाड़े की छुट्टी में सब जायेंगे!”,मुुन्ने ने शोर मचाई !

कंबल की भी संख्या कम धी,फटी हुई थी रजाई !

“हम सब साथ नही जा सकते!”मां ने चिंता जताई।

“रात में जब पड़ती है ठंड, लड़ते हो सब खींच चटाई!

आस पड़ोस में होगी खिल्ली,रिश्ते मे घुलेगी खटाई ।

बीच रात में पापा उठकर करेंगे सबकी बहुत पिटाई!”

सुनकर ऐसी बातें ,सबके चेहरे पर गहरी उदासी छाई!

बोली मुन्नी “फिर दे दो हमको भैया के हिस्से की मलाई!”

तभी बजी फोन की घंटी,भैया की आवाज पड़ी सुनाई,

“छुुक- छुक गाड़ी से सबको लेकर आ जाओ,पप्पा-आई!

बड़ा मस्त है मौसम यहां!ना चाहिए कंबल और ना ही रजाई!”

(स्वरचित कविता)

शमा सिन्हा

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