तुम पास रहो या बस जाओ मुझसे दूर ,
गूंजती रहती तम्हारी तान सुरीली मधुर।
धड़कते श्वासों में बसे हैं तुम्हारे ही सुर,
मेरा जीवन बना जैसे राधा का मधुपुर!
क्या नाम दूं इसको, यह रिश्ता कैसे समझाऊं?
प्रतिपल साथ मेरे, मग्न मैं इसको ही निभाऊं।
“खुशियां तुम्हारे चूमें चरण!”मै गीत यही गाऊं,
तुम पर ही अपना सर्वस्व न्योछावर कर जाऊं!
ना इच्छा,ना अधिकार ,ना है कोई अब कामना!
बस हम रहें जहां भी यह रिश्ता सदा रहे बना!
है विश्ववास,साथ यह सदा रहेगा सबसे अपना,
तुम प्यार हो मेरे! बंंधन नही,मीत मेरे मनभावना!
शमा सिन्हा
24-11-23