कल्पना और अपेक्षा से भरकर बनाउंगी तस्वीर ।
सुखमय जीवन और मनभावन सुधार की तदबीर।।
चुन चुन अपराजिता, हरश्रृंगार,भर खुशबू रंग-अबीर,
पूर्ण करूंगी अधूरी मैं वह अपनी कल्पना की ताबीर !
श्यामल आकाश को मै कुछ ऐसे हिस्सो में बांटूंंगी।
पुष्पित कुंज-गुच्छियों सा इंद्रधनुष से रंग डालूंगी।।
आधे मे शरमायेगा सूरज,प्रभाति संग कुहुकेंगे बादल ।
बाकी में नाचेगा चांद,साथ चलेंगें तारे पैदल।।
रसमलाई,गुलाब-जामुन,
जलेबी मिल,उकेरेंगीं रंगोली।
महफिल में होंगें बस दो,मैं और मेरी बचपन की सहेली।।
एक बार फिर से अलमस्ति अपनी, आयेगी दोबारा।
खट्टा मीठा स्वादिष्ट पाचक हम खायेंगे बहुत सारा।।
हर सोमवार के साथ ही आयेंगें शनि और रविवार ।
हर दिन,पूरे साल, खुशियों से भरा रखेंगे अपना परिवार।।