सब लौट रहे हैं अपने निज घर ,
थका मन पर उत्साह भरा है स्वर!
मंजिल पहुँचने के हैं जल्दी में ।
बच्चों संग, कुछ वक्त गुजारने!
समय ,पंछी सा नजर है आता ,
सूरज नित नये सपने है दीखाता !
शाम,लेकर खुशी पल भर आती साथ।
पतंग बन लम्हे उड़ा ले जाती रात!
घोसलें डाल पर रह जाते , खाली,
होती शुरू सफर की नई पाली!
नया सहर सारा कुछ बदल देता ।
व्यस्त वह,पुनः रथ अपना है हांकता!
शमा सिन्हा
10-6-’20