रोको ना मुझे

बह जाने दो मुझे, अब जिधर मन चाहता है।

रोको ना आज मुझे, यही आज जी चाहता है ।।

बेगानी हवायें खींच रही,मन दिशा चाहता है।

नये सावन की टपकती बूंदें पीना चाहता है।।

पूछो ना मुझसे कुछ,कारण ना कहो बताने को।रोको ना मुझे,पहले जरा स्वाद उनका ले लेने दो।

देखा था मैंने पत्तों से पेड़ों को इनका पारण करते।

अनगिनत बूंदों से जड़ों को पाताल तक सींचते।।

उन्हीं बादलों को नजदीक से आज चूम लेने दो ।

वो पराये सही,पल भर को अपना बना लेने दो।

क्या पता,ये हवाएं कब रंग बदल लें अपना

ये उजाला ये सूरज छोड़ जाएं साथ अपना।।

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