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मानसरोवर साहित्य अकादमी
मानसरोवर ई बुक पत्रिका हेतु, मेरी रचना
दिनांक -12.9.24
विषय -“मेरी अपनी- हिंदी भाषा
"मेरी अपनी हिंदी भाषा"
हृदय से आभार है मेरी अपनी हिंदी भाषा को।
सौहार्द जगाकर जोड़ जाती मेरे सबअपनों को।।
दूर देश बसे बच्चों में घोल देती असीम मृदुलता।
मिलाती हर समय सहेलियों को इसकी सहजता।।
कोयल सा कोमल सुरीला होता इसका उच्चारण ।
निर्जल व्रती को मिलता जैसे सूर्य उदय पर पारण।
हर भाव सहज ही हो जाता है सबका अभिव्यक्त।
भरती उत्साह हिंदी हममें, जितना शूरवीर को रक्त।।
त्याग, करुणा, आत्मबल का हिंदी है प्रतीक।
हर भाव की अभिव्यक्ति होती स्वभावत: सटीक।।
करु मां को याद तो सहज प्रस्फुटित होती हिंदी।
स्मृति नासूर पर लगाती है अमृतमलहम हिंदी।।
खुशी को अनेक बधाई दे जाती है हिंदी भाषा।
हिंदी-भाषी की मुस्कान जगाती अमित आशा।।
संस्कृति की मिठास,अपनों का अपनापन है हिंदी।
रामचरितमानस-भागवत की है बहती सरस नदी।।
ब्यास,बाल्मीकि,दिनकर,रविन्द्र,प्रेमचंद का है श्वास।
सबको जीवित रखा हिंदी ने हीआज हमारे पास।।
“वंदे मातरम”ने”जन गण”को पहनाया सरताज ।
एकता के सूत्र में बांधा दिया हमारी हिंदी ने आज।।
स्वरचित एवं मौलिक।
शमा सिन्हा
रांची।