काव्यमंचमेघदूत

विषय -#चित्रलेखन
दिनांक -25.9.24

‌‌ “बादलों की बाहों में “

पहाड़ोंसे मिलने मैं जा पहुंची घाटी से दूर।
पसरी धरती यूं सजी जैसे कोई चपल हूर।।

रूई की गठरी से ढके आकाशीय दरख़्त ।
देख मन मेरा, हुआ कुछ पल भय आक्रांत।।

जैसे उतर रहा हो आकाश, ऐसा था नजारा।
अचानक मिलने धरा से वह हो गया बांवरा।।

चला समीर बन द्रुतगामी,बहा ले गया साथ।
मंत्र-मुग्ध मदहोश,चल पड़ी थामें उसका हाथ।।

शीतल उसके स्पर्श ने कंपकंपाया मुझे एक बार।
निकला पथ अपने फिर तोड़ मेरी बेहोशी का तार।।

कुछ पल मैं लड़खड़ाई ,समझ गई उसका व्यवहार।
उस अलमस्त नृप-नीर आया उड़, कर सागर पार।।

सहयोगी उसके रूक गयेचीड़ और देवदार बीच ।
अटके बादल व्यस्त हो गये,लगे पत्तों को सींच।।

कुछ नीचे सड़क पर लगे सरकने, मनमर्जी दिखाते।
चलित वाहनों के आगे दृष्टि अवरोधक पैदा करते।।

मूक दर्शक बनी मैं विचारों के असमंजस में पड़ गई।
तभी सूरज ने झांका, सहसा बदली भी सिमट गई।।

स्वरचित एवं मौलिक।

शमा सिन्हा।
रांची।

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