दिनकर भैया!

क्या कहकर मैं खुद को समझाऊं

उन वादों को आज कैसे मैं  दोहराऊं।

त्योहार पर जब हम सब  मिलते थे

अश्रुजल से विदा आप हमें करते थे।

अब कहो कौन वैसे हमें लौटायेगा?

हम सबकी हौसला अफजाई करेगा?

परिवार के दिनकर,भैया आप ही थे !

आपकी छाया हम भाई-बहन जीते थे!

दे ना सकते हम आपको कभी विदाई!

राह सदा दिखाना,बने रहना “बड़के भाई”!

स्वरचित एवं मौलिक।

छम्मो

ता:-२०.१२.२४

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *