धरती विशेषांक
तारीख १०.४.२५
शीर्षक -“धरती की स्थिति”
कैसे गिनाऊं कितनी है हमपर, धरती की कृपा?
लेकिन अपने तत्वों से रच हमको, ओड़ ली व्यथा!
अनगिनत सपनों का हमारे लेलिया जो उसने जिम्मा।
स्वार्थ परायण मनुष्य ने बनाया उसे कहने को ही मां!
छीन लिए अधिकार सारे,बांधा इच्छा के बंधन में।
काट रहे उसके फेफड़ों को, घोप रहे मशीन सीने में।
कंद मूल फल खेत उजाड़,बना रहे बहुमंजिली अट्टालिका।
रौंद रहे हरियाली पर्वत की,सुखा रहे सुख की नदियां!
हीरे, जवाहरात की चमक में खोई सारी मानव जाति।
इच्छा-सूची में उलझ कर भूल गए सब प्रकृति की रीति।।
ऐसा ना हो कभी, मां धरती का धैर्य जाये टूट।
बने मंथरा प्रगति की नीती सारी पृथ्वी जाये लूट।।
जाने कब मानव समझेगा,कहती क्या धरती की धड़कन।
रहेगी ना अगर सुरक्षित धरणी
होगा कैसे जीव पावन?
स्वरचित एवं मौलिक रचना।
शमा सिन्हा
रांची, झारखंड।