“सादगी”


माथे पर सिंदूरी बिंदी ,होठों पर हल्की सी हंसी,
बहुत कुछ बोल जाती है उसके श्रृंगार की सादगी!

उदित भास्कर चमकताहै बन उसके सुहाग की बिंदी,
लगा जाती है चार चांद उसकी, सादगी की खूबसूरती!

खुशी के मौके पर जब व्यस्त खुद में सब हो जाते है,
ध्यान अपनी ओर खींच लेती है,उसके रुप की सादगी!

रखते हैं जब मचल मचल कर सब अपनी मांगें,
बिन बोले ही बंया कर देती है उसकी मूक सादगी!

कृष्ण की बांसुरी सी मोहक खिलखिलाती उसकी है हंसी!
बिखरा जाती कोमलता हरश्रृंगार की, उसकी सादगी!

रौशन करती है महफिल का हर कोना उसकी उपस्थिति ,
बहुत चैन और सुकून से सबको रंग जाती है उसकी सादगी!

रंग सांवला, और श्यामल सौंदर्य ही वह सदा बिखेरती,
श्रृंगार बिना भी पुुष्प सरीखी निखरती है उसकी सादगी!

शमा सिन्हा
रांची
5-12-23

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