मंगलमय आशीष उपहार लेकर
करता सदा प्रवाहित प्रेम सागर
होता पूर्ण श्रृंगार इसे ही पाकर
मनमीत पहनाता इसे पिरोकर!
निभता साथ जीवन भर निरंंतर ,
जोड़ता दोनों के मन का अन्तर।
रहते सदा दोनों एक दूजे के होकर ,
पनपता प्रिय-प्रिया स्नेह बंध कर!
यज्ञसूत्र यह है पवित्र सम्बन्ध का
रक्षा करता यह उसके प्राण नाथ का!
मंगल करता सपरिवार यह
आपका!
अखंंड बनाता,सुहाग हर नारी का!
बड़े प्रेम से इसे सब प्रतिदिन पूजतीं
सिंदूर रोली का प्रथम टीका लगाती
नित इसके आगे हैं माथा टेकती,
सुुहागचिन्ह को, प्रेम से वे जोगती!
शमा सिन्हा
6-12-23