विनीत समाज में बनती जो व्यवहारिक सम्मान की सीमा!
विचारों को लोकलाज से संयमित करने वाली वो शिक्षा !
दहलीज पर ही रोक दे जो आगे बढ़ते उत्श्रृंखल कदमों को!
परिभाषित करे श्रीराम वनवास और सीता के तिनके को!
परिवार की लज्जा का रक्षक, पहनाये कवच जो शील को !
प्रतिष्ठा का रखे देेश-मान,दिशानिर्देश दे हर योद्धा को!
रंग गेरुआ दे कर,शोभित करे सामाजिक कर्तव्यों को!
आदर्शो की माप प्रदान कर, शिकस्त दे हर लाचारी को!
पुरुषत्व का आधार बने, स्त्रीत्व की जो लोक लाज हो!
श्रेष्टता के रंगों रच डाले मााव-मन -वचन और कर्म को!
विशवास सूत्रों से बांध कर, संयमित रखता जो समाज को!
अंतर्निहित व्याख्या इन सबकी, परिभाषित करती मर्यादा को!
शमा सिन्हा
7-12-23