“समझदारी”

जब सब बोल रहे हो तो वह चुप रहने को है कहती।

हो रहा हो जब अन्याय तो, शांंति फैलाने आ जाती!

अनुजों को धैर्य दे, समझा कर है बस में कर लेती!

कभी हक के लिए उठती आवाज में है समा जाती!

अग्रज के चरणों में सेवा सदा अर्पण है यह करती ,

बड़े मुद्दो केलिए, छोटे अधिकारों को अक्सर छोड़ देती!

रुकने की जगह,वह नई उमंग संग आगे बढ़ जाती!

सब के साथ जुड़कर वह एकता का मत है अरजती!

आता जब संकट तो सबको साथ लेकर है वह चलती

अवलोकन कर स्तिथि का,”धीरज”समाधान पनपाती।

उम्र के हर मोड़ पर ये है,आत्मसंतुष्ट बनी खड़ी रहती!

“कौन हो तुम, कहां से आईऔर किस गांव में हो तुम रहती?”

जूझते रहते किस्मत से सब,जीतने को मचाते जब हड़बड़ी”,

पूछा मैनें ,”वैसे अवसर पर बनती तुुम गम्भीरता की कड़ी !”

देकर छोटी सी मुस्कान, धीरे से बोली, जब उसकीआई पारी,

“देती सौभाग्य,सौम्य व्यवहार तुम्हे,मैं हूं तुम्हारी समझदारी!”

(स्वरचित कविता)

शमा सिन्हा

ताः 18-12-23

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