दिखने लगे बदलाव अनेेक जब समय के रफ्तार संग!
हो रहा है जवां-गुरूर का, नशा अचानक ही भंग!
पूछा मैनें ,” यह परिवर्तन मुझे क्या बताना चाह रहा?”
उपचार, झुर्रियां मिटाते नही,चेेहरा बेनूर क्यों हो रहा?”
गूंजी बिंदास खिलखिलाहट, वह मुझपर ही हंस रही थी!
सिर पर हाथ रख वह,बेबाक मेरी तरफ देख रही थी!
अचानक एक खौफ ने था जैसे मुझको जकड़ लिया!
छा गई वह तस्वीर, कुमार सिद्धार्थ ने था जो अनुभव किया !
अन्तरात्मा ने दोहराया,”चिर सत्य को तू कैसे भुली ?
बिताये दिन अल्हड़ता में ,तूने बहुत मनमानी कर ली!
तुझे तो वस्त्र बदल कर अपना किरदार है निभाना!
बालपन,जवानी,बुढ़ापा, सबको बस वरण है करना !”
दिवा-देव की तरह, तुझे बस कर्म रथ गतिरत है रखना!
“चरैवेती ! चरैवेति!”कर्तव्य-पथ पर गमन निरन्तर करना!
गया सवेरा,दिन हो शेष,अथवा आये जिन्दगी की शाम!
एकाग्र- दृष्टि, कुुंति-पुत्र सी कर ,राम नाम से निर्वाह है करना!
(स्वरचित कविता)
शमा सिन्हा
रांची
ताः 19-12-23