“परछाई”

कहता जग,दिया नारी को उसने ही संंरक्षित जीवन है!

समझाए कोई निष्कर्ष उनका, हर तरह अस्वीकार्य है!

भूल गया कृतघ्न!वह कैसे,अपने नौ महीने गर्भ काल के?

क्या श्वास चल सकतीं पुरुष की स्वतंत्र,बिना उसकी ढाल के?

जिसने लाया संसार में, महिमा उस जन्म धात्री की है!

सूरज -चांद -सितारे,सबकी कल्पना,वही तो देती है!

अंधेरे मे रह कर स्वयं, रौशनी जीवन में वही भरती है!

सत्य यह शिरोधार्य करो,”प्राण हमारे संरक्षित उससे हैं!”

बढ़ा कर कदम आगे हमारे,स्वयं पीछे-पीछे चलती है,

स्नेह-अंक समाये उसके, हम मां की ही तो परछाई हैं!”

(स्वरचित कविता)

शमा सिन्हा

ताः 21-12-23

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