“मौकापरस्त”

हंसी,खेल, ठहाके में बीता जा रहा था उसका जीवन

कदम की रफ्तार इतनी,जैसे चलती है मुक्त पवन

तरक्की पर तरक्की पाकर नाचता मस्त मौला बन!

हो जाती सब तैयारी जब ,आ जाता वह देने भाषण!

श्रम जब करते सभी तो वह रहता व्यस्त नये सपने में!

ध्यान रखता वह ले क्या सकता है औरों के प्रयास से!

उतावला रहता लेने को फायदा मौका-ए-वारदात पे!

हर समय रहता वह था व्यस्त बस रोटियां गिनने में!

बादल छाये होते,तो झपट लेता वहकिसी की छतरी

आफिस के बाॅस को देकर चट बनाता रास्ता बेहतरी

झुकी आंखों से सिद्ध करता अपनी भोली समझदारी!

लुटे हुए से सब भौचक देखते रह जाते इस की पारी!

था नही उसे किसी के नुकसान और फायदे मतलब,

हर कीमत पर वह पूरा करना चाहता अपनी जरूरत ,

दोस्त बहुत बनाता,पर थी ना किसी से उसे उल्फत

बना कर उनको सीढी,ना देखता मुड़कर वह मौकापरस्त!

(स्वरचित कविता)

शमा सिन्हा

ताः 22-12-23

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