“सौंदर्य”
कल तड़के सुबह सवेरे,आया जब नगर निगम से पानी,
स्फूर्ति से उठाकर पाईप मैं चल दी नहलाने क्यारी धानी।
बोल उठी खिली बेला की कलि”देखो हुई मैं सयानी!
मेरी खुशबू पाकर, तेजी से आ रही वह तितली रानी।”
“अभी अभी मै खिल रही हूं,प्यास बुझा दो देकर पानी।
दो क्षण पास ठहर जाओ,बातें बहुत तुम्हें है बतानी।
कौन कौन हैं आशिक मेरे,और मैं हूं किस की दीवानी!
मैं सुंदर,मुझमें गुणअनेक ,कहती सहेलियां नई पुरानी!”
लगा मुझे ,वह पूछ रही ” क्या तुम सुनोगी मेरी कहानी?”
सबके संग मग्न मिल कर जीने का नाम है जिन्दगानी!
अपने को सबसे गुणी समझना, करता है खुद की ही हानि!”
दिन कब बीता,कब वह डाल से टूटी ,बातों में रह गई मैं उलझी!
जीवन में आनंद मनाने की सच्चाई , मैंने उससे सीखी!
(स्वरचित कविता)
शमा सिन्हा
14-12-23