मंच को नमन
R V N महिला काव्य-मंच,झारखंड
ता: 8-1-24
विधी- कविता
“प्रगट हुए कौशल्या के राम”
सहसा उपस्थित हुए ,राम भक्त शिरोमणी वीर हनुमान।
उच्च स्वर शंखनाद कर जगाया सबका कुुल स्वमान !
सेवा में रहते सदा समर्पित, हृदयासीन सीताराम काज!
उतरा स्वर्ग जमी जैसे,आये काक भुशुंडि और गरुड़ महाराज!
लहराई लााल विजय ध्वजा ऊँची,चमका कौशलेंद्र का ताज!
गली चौबारे सब महक रहे,लगा जैसे इन्द्रजीत का है साज।
पचास दशक उपरांत आया पवित्र,स्मित त्योहार सुहाना,
पवित्र अनुपम संयोग बना,चाहते सब दर्शन पाना!
सज धज खड़ी अयोध्या, बाट देख रही लल्ला का!
अधीरता से पूछ रही”कब दरबार रघुवर का सजेगा?”
व्याकुुल शहर निवासी जुटे हाथों से कर रहे प्रणाम !
छत्तीसगढ़,जनकपुरी का आनंद छाया जैसे चारो धाम!
मंंचन को अवतार झांक रहे, झिलमिल तारे चांद रहे नांच
अपने अपने लोक छोड़,देने आशीष, आये देवता पांच!
प्रथम ओंकार ध्वनी हुई, किया गणेश ने स्वर उच्चारित,
महिमा सूर्य की अतुलनीय,हुयेजो”आदित्य”निमंत्रित !
विष्णु बन रहे स्वयं पाप हस्ताक्षर,जग कर्ता सुरनायक!
हर रूप मनोरम होगा, नीहित होगी लीला अति सुखदायक!
कर रही नृृत्य गान निरंतर शिव सेना,शक्ति हैं आह्लादित !
नव निर्माण की चेतना जागी,सबका मन बना उल्लासित !
आज मनोरथ पूर्ण हुआ,आरती थाल लिये खड़ा संसार !
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, हो रहा न्योछावर सम्पूर्ण कोषागार!
देखो कैसी मनोहर घड़ी है आई घर घर गूंज रही बधाई !
तीन मंजिला मंंदिर बना,सज गई धरती,महक उठी अमराई!
गा रहा उल्लासितअंबर,चहुंओरओर बज रहीशहनाई !
“रोग शोक काहू ना ब्यापे”सर्व सम्पन्नता प्रकृति ने सजाई!
मन रहा सब त्योहार एक साथ,होली-दशहरा-दिवाली!
नजर उतारो,ले लो बलैया,कौशल्या घर,आये रघुराई!!!
(स्वरचित मौलिक कविता)
शमा सिन्हा
ता: 8-1-24