शबरी के राम

मंच को नमन।

मानसरोवर साहित्य अकादमि
दैनिक प्रतियोगिता
विषय- “शबरी के राम “
विधा-कविता
दिनांक- 18-1-24 शबरी के राम

रघुुवर की भक्ति करती,श्रमणा बन गई शबरी!
भीलकुंवर की बनी पत्नि!भील सरपंच की बेटी!


साथी मन ना पहचाना,भायी नही उसे,ऐसी भक्ति!

स्वीकार भीलनी ने किया नियती की थी यही मति!


छोड़ शबरी को बीहड़ वन में,वह गया देने जीव बली !

मतंग ऋषि ने दिया शरण,मिली शबरी को राम-मणी!


“त्रेतायुगमेंआयेंगें प्रभु राम,देेकर दर्शन कृतार्थ करेंगे! वन के इसी मार्ग,भ्राता संग एक दिन वो प्रस्थान करेंगे


उनकी सेवा में पुु्त्री समय ना गिनना ना करनातोल !”
स्वर्गारोहण किया मुनी ने,देकर संदेश अनमोल।

गुरुवर संदेश बना शबरी का नित आठों पहर कर्म !
राह बुहार कर, खोजकर मीठे फल जुटाना,बना धर्म।


बीते शतक अनेक, आंखों से वह बाट जोहती रहती।चख चख मीठे फलों को राम के लिए रखा करती!


“आयेंगें राम हमारे,दर्शन देकर तारेंगे मुझे एक दिन !”
इसी विचार में खोई वह राम नाम रटती पल छिन।


हृदयासीन राम को, वन में मिला शबरी का संदेसा!
पहुंचे कुटिया पर उसके,प्रेमीभक्त का मिटाया कलेसा!


मिल कर भीलनी से,रामने पायाअमृत से जुठे बैर मीठे!
श्रमणा सहज चरण समाई, आदर्श पुरूष श्रीराम के!

(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
शमा सिन्हा
रांची

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