“रामायण की महत्ता”
रामायण काव्य नही अपितु आदर्श संहिता हैं।समाज के प्रत्येक क्षेत्र के वर्णन के साथ, गुरु, माता ,पिता,स्त्री-पुरुष, भाई,मित्र,सेेवक यहा तक की दुश्मन की महत्ता का नाम रामायण है। नीतीपूर्ण जीवन के संदर्भ में समसामयिक घटनाओं का किस प्रकार आदर्श सामाजिक संयोजन होना चाहिए, इसी का वर्णन बालमीकी मुनी और तुलसीदास ने किया है।
कर्तव्य और धैर्य के पथ पर चलकर जैसे श्रीराम ने ना सिर्फ अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया बल्कि सन्तुष्ट जीवन जीने की आधारशिला भी रख दी जो स्वतंत्र भारत के संवैधानिक अधिनियम का भी आधार बना ।हनुमान का पुत्र स्वरूप ;केवट का सेवा भाव;सीता राम का समर्पित प्रेम;लक्षमन-भरत- शत्रुघ्न का राम के प्रति त्याग भाव,सुग्रीव- विभीषण का सखा भाव , शबरी का भक्ति ,उर्मिला की सहनशीलता इत्यादी अनेक आदर्श रामायण नए समाज को अमृत तुल्य संस्कार दिये।
इस की मधुुरता का आनंद आज भी समाज में उतना ही है जितना त्रेतायुग में था।संसार का कोना कोना रामायण गान से परिपूर्ण है।इस का साक्ष्य भारत ही नही बल्की लंका,कोरिया,लाओस,चाइना,माईनमार,बाली, जावा,ईरान, मंगोलिया,ईरान, इंडोनेशिया,अमेरिका…सम्पूर्ण संसार है।सनातन धर्म का आधार और आदर्श जीवन स्वरूप है। वास्तविक जगत को बस इसकी चेतना की आवश्यकता है। हमारे प्रधान मंत्री ने सच ही कहा कि इस जगत के राम ही सुरक्षा हैं!राम ही ऊर्जा है!राम ही समाधान हैं!
शमा सिन्हा