मोर ने वन में पीया पिया मधुर रट है लगाई
प्रेम रंग अपटन चढ़ा मोरनी होली खेलन आई!
कर रहे बाग-भौरे गुंजार,हवा में बज रही शहनाई !
खुशबू ने घोला भंग तुलसी में,बेणु ने है सबकोपिलाई !
चकोर से पूछा चांद ने”क्यों तूनेऐसी हालत बनाई ?
देख मुझे हो रहे मदहोश,जैैसे रांंझा ने हीर हो पाई!”
…….
“मेरा हाल ना पूछो चंदा,दिवानगी ऐसी है छाई!
सुुख सराबोर है गोकुल,लल्ला पाकर कुंज बौराई!
गोपियों संग माखन-गेंंदो की होली खेल रहे कन्हाई
बृृजउत्सव नही तुमने देखा,तभी कर रहे मेरी हंसाई
राधा गूंंथ रही बैजन्ति,गोप-गोपियां रंगें रंग कन्हाई !
नंंद बाबा भंडार हैं खोले,लुटा रही खुशी यशोदा माई!
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रोक मन अपना,यह मोरनी भी देखो पीया से है मिलने आई!
अमावस की रात यह लम्बी!और होली में माधव से जुदाई!
भावे नही तनिक मुझको,पूछो ना उदासी क्यों है छाई ?”
सबकुछ लगता है निरर्थक,जबतक रंग ना डालें कन्हाई!”
देख कृष्णप्रेेम पगे चकोर की हालत चंद्र अति विह्वल हो गये।
चकोर संंग भावों में बहकर,खेलने होली वृन्दावन चल दिये!
शमा सिन्हा
13-3-24