मां

जब भी खुलती हैं आखें तुम्हे काम में व्यस्त देखा

जगी रहती हो पहर आठ, तुम ऐसी क्यों हों मां?

आंंचल में भर प्रेम अथाह,खड़ी क्यों रहती सदा ?

गलतियों को मेरी माफ करने को क्यों  हो अड़ी रहती?

अपरिमित मेरी मांगो पर कभी क्यों तुम नही टोकती ?

तुुमसे अक्सर मै रूठ जाती,क्यों तुम रूठती नही मां?

हमारी मांगे पूरी करती,तुम कुछ क्यों चााती नही,मां?

कष्ट अनेक सहे तुमने,फिर वरदान मुझे क्यो मानती मां?

हर जिद को हमारी मां, तुम जायज क्यों हो ठहराती?

तू भोली नादान ,अपने बच्चों की मनमानी नही समझती!

इच्छा हमारी पूरी करने को अपने सपने सारे तजती हो

छल कपट से दूर, माया में हमारी तुम खोई  रहती हो।

कान्हा की यशोदा हो तुम , राम लला की हो कौशल्या!

तूम निर्मल गंगा सी,तुम जीवन दायि आदित्य आव्या!

त्यागमूर्ति हो देवकी सी,शबरी जैसा करती सर्व समर्पण !

लेकर नौनिहाल को साथ झांसी की रानी उतरी थी रण प्रांगण !

 बनकर स्त्री-शिक्षा स्त्रोत ,सावित्रीबाई फूले ने किया अगुआई

रख सनातन सामाज का आधार ,धर्मध्वज बनी अहिल्याबाई!

भेज कुरुक्षेत्र धर्म रक्षक पुत्रों को , रखा देश का स्वाभिमान,

बनती कोमलता  तेेरी वीरता-पाषाण ,रखने को राष्ट्रसम्मान!

पन्ना धाय की निष्ठा ने, दिया अपने ही पुत्र का बलिदान!

जीवन-दीप तुम्ही हमारी,तेरा ही प्रकाश  मार्ग-संंचालक है मां!

प्राणदात्री,चरित्र निर्मात्री,पथ-प्रदर्शक, ममता-मूर्ती,तू ही सबकुछ है,मां!

स्वरचित एवं मौलिक।

शमा सिन्हा

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