“कहां मुकम्मल जिन्दगी?”

रोज रोज की छेड़ छाड़ मुुझसे ना करो ऐ जिन्दगी

तुम्हारी जिद पूरी करने मे खाक होती है जिंदादिली!

औरों की उचाईयों को तुम ,छूने की करो ना कोशिशें

चाहिए खुशी तो मन को बांधो,समेट रखो ख्वाहिशे !

कर्तव्य के रास्ते में सदा सबके,आती हैं रुकावटें बहुत,

टूटता है धैर्य कभी और बचती नही हिम्मत ही साबुुत !

सफलता में औरों के कभी,तौलो नही सक्षमता अपनी,

खुद के प्रयास को जोड़ो,सिर्फ उपलब्धियों से अपनी!

जीवन तुम्हारा है,औचित्य तुुम्हारा बड़ा! औरों का नही,

स्वयं निर्णायक बन,वही करो जो हो तुम्हारे लिए  सही!

सपनों के सागर  मे जिन्दगी कभी मुकम्मल  होती नही

कितनी भी करो कोशिश,संतुष्टी का गागर भरता नही!

खुशी की माप तो मन के सोच में  बुनी रहती है सदा,

औरों की सोच से व्यर्थ है करना अपनी खुशी का सौदा!

स्वरचित एवं मौलिक

शमा सिन्हा

9-4-24

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