तासीर, उसकी होती चित-शीतल- मधुर, वह है रसीली मनभावन मिठाई,
रंग जाता मन उसमें पूर्ण, हो जैसे नैसर्गिक कथा पावन कोई।
छुधा- तृष्णा संतुष्टी पश्चात, वह निकट अचानक दे जाये अगर दिखाई,
रसीले गुलाब जामुन, जलेबी, चन्द्रकला, उसके है सगे रिश्तेदार भाई,
अनोखी मीठी अनुभूति, नयनों ने संगीत-सरगम के साथ है पिलाई ,
जैसे पूर्ण चंद्र देख,मधुर राग में व्याकुल पुकार चकोर ने है लगाई,
ज़बान हमारी, बिना चखे ही,आनन्द- रस – सागर में डूबी उतराई ।
कंठ-हृदय-उदर पथ,पुष्प पंखुडियां केसर सुगंध ऐसी सुन्दरता पसराई,
स्वाद-कलिकाये, दृष्टि निर्दिष्ट हो,असीम नैसर्गिक संतुष्टी भरमाई ।
किया जब आलिंगन, जिह्वा ने रस-बून्दो का, बजी बहार की उच्च स्वर मधु-शहनाई ,
आत्मा यू आनन्दित हो गयी जैसे माखन- मिश्री पाकर कृष्ण कन्हाई!
तनिक सचेत रहना! चाहतेअगर बढती रहे सरसता की घड़ी-लम्बाई,
रस‐मिष्टी नित पारण करना ,सतत बनी रहेगी कंठों की तराई!
शमा सिन्हा
7-1-20