क्यों, कभी कभी दुआ भी
गलत मांग लेतें हैं हम!
खुद को ही बस, जीत का
हुनरबाज मान लेते हैं हम!
सामनेवाले को हराने में,
खुद ही हार जाते हैं हम,
और गम को छुपाने में,
सबकुछ बता जाते हैं हम!
……………
वो क्या कहेंगें, हम पर हसेंगें,
यही विचारते रह जाते हैं हम!
वो भी सोच सकते हैं, यह क्यों
भूल जाते हैं हरदम!
उन्हें भी, वह सब दीखता
है,जिसे नजरअनंदाज कर देते हैं हम!
खुद को समझदार, उनको ही नासमझ लेते हैं हम।
…………..
सबके साथ यही होता है या
सबसे होशियार हैं हम?
वक्त का यह तकाजा है या
उम्र की ढलान पर हैं हम ?
रेत की लकीरें मिटाकर,नई
रेखा खींचना चाहते हैं हम!
देखें, कोई और भी,है या
अकेले खिलाड़ी हैं हम?