अब मैं बच्ची नही रही। समय ने अनेक परिवर्तन किए पर फिर भी यह मन बचपन की यादों के साथ होली की हुड़दंग भी अभी तक समेटे हुए है,जिन्हे वह उपयुक्त मौकों पर चलचित्र की भांति समक्ष प्रस्तुत करतारहता है।
मुझे आज भी याद है वो सब तैयारियाँ जिन्हें हम होली के बहुत दिन पहले से करते थे।पक्के रंग की अच्छी ब्रांड की पुड़िया अलग रखी जाती थी।जले कगज और तेल मिलाकर पोटीन बनाया जाता।कौन क्या काम करेगा ,सबकी ताकत और उम्र के अनुसार सुपुर्द किया जाता था।
किसने कितनी डांट खिलवाई, इसी आधार पर पोताई और रंगाई का हिस्सा तय होता था..इत्यादी!इन सब निर्णयों के लिए बड़ी दीदी लोग secret meeting करतीं।फिर सबको काम बताया जाते।
मां -पापा के बहुत रोकने पर भी हम सब बच्चे ग्यारह बजे से तीन बजे तक खूब मस्ती करते। पुआ कचौड़ी पारण करते,रंग -पोटीन लगाते और सारे शिकवे दूर कर घर लौटते। रगड़ रगड़ कर सफाई होती और खाना खाकर एक बार फिर सूखे अबीर गुलाल की होली के लिए तैयार हो जाते।
हम सब मोहल्ले के बच्चे सब बड़ों के चरणों पर अबीर डाल कर प्रणाम करते,दही बड़ा खाते और खूब अबीर खेल कर सात-आठ बजे तक घर लौटते।
मुसीबत तब होती जब अगले रोज स्कूल होता। हाथ और चेहरे पर लगे रंग की वजह से डांट पड़ती। कभी कभी सजा भी मिलती पर होली का आनंद उन सबको मिटा देता ।
वो रंग हमे बहुत अच्छे लगते थे।सच कहूं तो हम बड़े फक्र से उन्हे रखते थे।ठंंड के प्रति हमें कितनी भी चेतावनी मिले, मौसम चाहे कैसा भी रहे, हम तो होली जरूर खेलते थे!
आप सबको भी होली की अनेक शुभ कामनायें।