ऐ नारी, तुझमे ऐसी कौन सी नई वह बात विलक्षण है,
हर बार, पल पल, प्रतिछन तू बन जाती कुछ खास है??
बिजली कड़के बादल बरसे, पृथ्वी डोले, तू अडिग है
घोर अंधेरा छाये, तू धातृ स्थिर-स्तंभ हिम्मते-आस है!
स्नेह-अंक में भर, नौ मास, संरक्षित-पोषित नायाब किया,
तन मन सब मेरा अपनाकर,अटूट बंधन ही बांध लिया!
कटी नाल, हम रो दिए, आंसू पोछ जाने क्या समझाया,
चुपके से फिर इक बार, मुझे प्रेम डोर से जोड़ लिया!
कहीं रहू, तुम्हें खोजती हूँ, कितनी भी उम्र क्यों न है गुजरती!
सफ़र के हर मोड़ पर, पकड़ कर उंगली, हूँ चलना चाहती!
यही सोच,तुम सदा साथ हो, रास्ते बीहड़ भी मैं तै कर जाती,
जानें वो कैसा बल है ,बंध कर हूँ जिससे संजीवनी पा जाति!
– मातृ दिवस के सस्नेह बधाई के साथ