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अस्थिर हुआ
, पल भर कुछ यादों मे,माधव का बेचैन मन,
श्याम-घन घिरे थे,फिरभी मुड़कर, चल दिए राधाके वृन्दावन
राह तकते,कुजं में ढूढती आँखे,उत्सुक थी किशोरी मिलन।
जमुना तट,वट छैया तले देख,पूछा “क्यों प्रिय हो इस हाल में ?”
लली कह उढी “आह, श्याम आये आज,फिर हमसे नेह जोड़ने?”
प्रेम-आतुर हो झाँका नंदन ने,राधिका के अधीर मृग नैनो में ।
स्नेह चितवन से , बांह थाम,ले चलें मनोहारिन को निधि वन में।
निश्चेष्ट मगर आशवसत मधुर गामिनी ,बढा रही थी अपने धीर कदम।
बैन न थे कहने को कोई ,संजो रखें थे दोनों ने बस, अथक अपनापन।
भींगा गया अंग वस्र ,व्यथित हृदय बहाता रहा निरंतर , अश्रू धन।
अस्त सूर्य में मध्यम प्रकाश, गतिशील था सुगंध सरस प्रेम पवन,
देख छटा मधुमास सी, रात्री उतरी,सितारों जड़ित चुनरी पहन।
स्नेहिल कर से ,तभी माधव ने किया चमकता एक तारा चयन।
बना बिंदी ,उसे लगाया माथे पर जयो, भींग गये दोनों के चितवन।
रुक न सका नीर आँखों का,कटि रात्री धीर,मधुरिम बिना शयन।
हाथ थाम,एक दूजे को रहे तकते,हुआ न कुछ शब्द सम्भाषण।
मुग्ध रात थी,देख प्रेम युगल को, हृदय न अब था जिनका बेचैन,
अद्वितीय बना प्रेम-योग ,समझ लिया दोनों ने, एक दूजे का हृदयानन।
ऐश्वर्य आत्मग्यान का पाकर ,समृद्ध हुआ गोविंद राधिका अन्तर्मन,
मुक्त हुई अभिलाषा, जागृत समभाव ,सत्य अर्थ हुआ स्थापन।
स्वीकारा विरह- मिलन,जन्म -मृत्यु,सब पचं तत्व का है रुदन!
संयोग हुआ चिरंतन, अटूट प्रेम परिभाषित ,बन गये दोनों अद्वैतम!
शमा सिन्हा
12-8-’20
Posted on August 21, 2020
यह कविता मैंने अपनी एक कल्पना के आधार पर लिखा है। मुझे वास्तविक घटना की पूर्ण जानकारी नहीं किन्तु मन में यह बात बार बार आती है कि,जब कृष्ण कुरू छेत्र के युद्ध के बाद द्वारिका के लिए प्रस्थान किये होंगे तो वृन्दावन-मथुरा से गुजरे होंगे। उन्हे राधा जरूर याद आईं होंगी। क्या कृष्ण उनसे मिलने के लिए नहीं गये होंगे?इस कविता में उसी घटना का काल्पनिक चित्रण मैंने किया है।
कुरू छेत्र कूच,व्यथित चित, टूटा द्वारिकाधीश का धैर्य धन
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