मन को छूती हैं वो बीती बातें ,
सुगन्धित सरस बसी हुई यादें ,
अतीत बन कर रह गई जो संग,
सहेज रखा है अंतरंग मे वो प्रसंग,
कभी अकेले नहीं जो रहने देतीं ,
मधुरस बरसा , संग फेरे हैं लेती !
सुबह सुबह आखों का परिचय
बुला लाती घटना अपराजय
बसी ख्वाईशो से सहसा मिलवाती
भूली बिसरी कूछ लमहे खटकाती
असमंजस ,मै अकसर सोचती रहती ,
मन के द्वार क्यो ये यू दस्तक है देती ?