द्वार ये क्यो, मन के है अकसर आती? … Continue reading »

मन को छूती हैं वो बीती बातें ,
सुगन्धित सरस बसी हुई यादें ,
अतीत बन कर रह गई जो संग,
सहेज रखा है अंतरंग मे वो प्रसंग,
कभी अकेले नहीं जो रहने देतीं ,
मधुरस बरसा , संग फेरे हैं लेती !

सुबह सुबह आखों का परिचय

बुला लाती घटना अपराजय

बसी ख्वाईशो से सहसा मिलवाती

भूली बिसरी कूछ  लमहे खटकाती

असमंजस ,मै अकसर सोचती रहती ,

मन के द्वार क्यो ये यू दस्तक है देती ?

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