अलग होती है सुबह सबकी

सुर्य, प्रकाश फैल जाता है प्रतिदिन सर्वत्र ,

रंग देता कालिमा को भी जैसे हो स्वर्ण पत्र ,

संध्या को सिमटा देता,धरती आन्चल छिपा,

चलता सप्त अश्व रथ,विवस्वान आरूढ हुआ।

कीट-कलरव गून्ज, सूचित नव दिवस है करता,

श्यामल भौरा पंख फैला,चिड़िया के संग उड पडता,

बाग बगीचे, आगंन कानन व्यस्त होकर थिरकता,

नये दिवस की उपलब्धी , लाने को मानव चल पडता।

रवि तो वही रहा है ,किंतु अलग दिन होता सबका है,

उमंग भरा जीवन जिसका,श्वास खुशी के वह लेताहै,

आकांक्षा अतृप्त हो तो,वह स्वतःनिढाल बन रहता है,

डूबती आशा मे लिपटा जैसे तिनका,किनारा खोजता है।

वही उजाला दुल्हन नवेली का,चित कर देता है उदास,

गुजारी रात जिसने,आगोश मे अपने प्रिय के पास,

सुबह की रोशनी सहसा कराती जुदाई का उसे एहसास ,

मुर्झाये फूल भी विवश हो तोड लेते मिलन की आस।

सुनकर गान परिन्दो का, खुलते अलसाय चार नयन,

मुन्दी हुई आखो सहसा ,मधुर आलिंगन किया चयन,

बंद द्वार का हुआ इशारा,कर रहे अभी दोनो शयन,

छाया रहा नशा मिलन का,छूटा होशो- हवास गहन।

चित्र विद्यार्थी का,रातभर रहा जो प्रश्नो मे रहा खोया,

उत्तर पाने की जद्दोजहद मे ,पन्नो को रहा पलटता,

सुबह इम्तहान की,कलम- कार्ड सिलसिला रहा चलता,

शगुन, दही-मछली की लेकर,दिशा जीवन की खोजता।

शमा सिन्हा

4.12.20

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