मै थी थकी ,बिस्तर पर करवट पडी
बडी खिडकी के पार आखे जो गईं
एक नन्हा सा बादल , स्थिर सा दिखा
कहा मैने उससे,”हो तुम भी मुझ सरीखा।
खोज रहे हवा, साथ उसके उड जाने को।”
सुन कर मुझे , वह वही कुछ यूं स्थिर हो गया,
टेढी भवों को चमकाता उसने मुझे ऐसे देखा,
फिर उतर, उचाई से मेरे पास खिसक आया।
पूछा ,”किस कोने से मै बादल नजर आया तुम्हे?
उठो!खोल पुतलियां तुम , जरा ठीक से देखो मूझे,
फिर कहना सच में तुमने क्या देखा है और किसे?”
मै उठ बैठी, चकित सी,फिर आखें मीचा मुट्ठी से,
घिरते अधेंरे को चीर, ताका जो उस ओर की दिशा
बडा बेफिक्र,अपनीओर देख, चादं को पाया मुस्कुराता!