मेरी कश्ती

दीखती नही है कश्ती,नजर आता नही किनारा,

बदल गया सब कुछ, जाने कहा गया वो नजारा!

नये उत्साह से शुरू होने को था नये सिरे से सफर

सहसा दर्द ने बिंधे तन से,कदम रुके लडखढाकर।

रह न सकी मै खड़ी, टूटे मनसूबे सारे बिखरकर

फरिश्त पूरा न हुआ, कागज पर लकीर बस रह गई जुडकर।

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