सजा ली है,मौत ने निडरता से अपनी बारात
बना लिया सबके श्वास को,उसने है सौगात।
दे दी है मोहलत ,कुछ सबको खुशहाल जीने की,
गीत गाकर रही,जीलो कुछ पल बिन्दास जिन्दगी।
लेकर हाथ में श्वेत शाल,साथ वह चल रही संग हर घड़ी ,
तोड बंधन सारा,काटकर रख जाएगी माया की कडी।
लेकर नाम राम का,बिछा रही हैं अनेक बांस बिछावन,
सुखा रही आखों मे भावभरा बूंदों का विदाई सावन।
“यह मेरा, यह तेरा”, की रट फिर भी कर रहीअनर्थ है,
निष्प्राण उदार सम्बन्ध भी दूर है आत्मियता के दान से,
खनक बहुमूल्य थातु -पत्थर की,कानों को अभेद्य हो चुकी
बंद तिजोरी को दफन कर रही देखो बेबाक यह धरती।
सजी पंचभूत निर्जीवकाठी, अब करूणा नही उकेरती
शूनयता ओढ,कतारबद्ध, द्वार पर खडी देखो मानव मूर्ती।
दुआ की आस कर, दवा -चिकित्सा,निरर्थक सिद्ध हो रही
जाने किस होड़ में,मनुष्य अंधेरे किले में है चढ रहा।
उम्र का जिक्र, भूल कर भी यहां अब नही कोई करता,
बच्चे जवान बुजुर्ग ,सब एक ही कतार मे है सवरता
यदुकुल नाश का जैसे हुई ब्राह्मण मुख भविष्य वाणी
अहमी मानव अभिमान भी दोहरा रही वही कहानी।