मौन को कुछ दो साल से मिल गई थी छूट
चिडियों की चहचहाहट उसे बस प्रातःलेती लूट
खाली रहने लगी थी सड़के,सारे शब्द गये थे टूट,
अपनो से बिदाई,तन्हाई ,उदासी हो गये थे एकजुट!
घर की चार दिवारी ,नाप गई थी कदमों का विस्तार,
असीमित भय इतना,भूले से भी कभी ध्यान ना जाता उसपार